तू..
तेरा साथ मजबूर करता है मुझे लकीरें लांघ जाने को, कुछ पल ऐसे बिताने को, गाठों में बाँध के रख सकूँ जिन्हें, जिन्दगी की शाम तक, अनन्त छोर हो जिसका उस आसमान तक, जेबों में भरना चाहता हूँ, कुछ ऐसे पल, जिन्हें अपने जीवन भर की कमाई मान लूँ, तो मन में इतरा जाऊं, हर शख्स, हर खजाने की गहराई को अपनी जेबों से उथला पाऊं, इस लोगों के मेले से रुखसत होऊं, आँखें तो बंद हो, पर मुट्ठियाँ भी भिचीं हो, मन के हर दरार तेरी यादों से सिचीं हो, मेरे पल मेरे हाथों से रिस ना जाएँ, जन्नत में जाके गुरूर से कह सकूँ, कि नहीं चाहिये तेरे दर कि चहचाहटें, ना चाहिए तेरे घर का नूर, मैं खुश हूँ अपनी उन यादों के बीच, जिन्हें धरती से लाया हूँ खींच....
Comments
Post a Comment